भाव भाषा को
मुखर कर देता है-- पुनः,
भाव ही कर्म को नियंत्रित
करता है, और, भावना से
ही भाव उदित
होता है ; अतएव
अपनी भावना को
जितने सुंदर, सुश्रृंखल,
सहज, अविरोध एवं
उन्नत ढंग की बनाओगी-- तुम्हारी भाषा,
व्यवहार, और कर्मकुशलता
भी उतनी सुंदर
अविरोध और उन्नत
ढंग की होगी।
--: श्री श्री ठाकुर,
नारी नीति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें