कम्फर्ट जोन से बच्चे

सफलता का दुश्मन है कम्फर्ट जोन !

सफलता का दुश्मन है 

आप जो भी कर रहें हैं आप उससे खुश हैं ? कुछ नया इसलिए नहीं रहे हैं क्योंकि वाकई आप इससे खुश हैं या यह आपका कम्फर्ट जोन बन चुका हैं। आइये जानते हैं क्या है यह कम्फर्ट जोन और क्यों यह आपकी सफलता का दुश्मन है। क्यों इससे छुटकारा पाना जरूरी है।

कम्फर्ट जोन क्या है ? 

कम्फर्ट जोन का मतलब है आराम क्षेत्र यानी आप जो भी कर रहे हैं उसमे आप कंफर्ट हैं। आपने अपना एक दायरा कायम कर लिया है और इस दायरे में अपने आप को आप महफूज़ समझते हैं। क्यों इस दायरे से बाहर आप सोचना ही नहीं चाहते। आप के अंदर डर  है कही अभी जो है, वो भी न चला जाये।

आप सफलता के सपने दो सजोते हैं पर उन्हें पूरा करने के लिए अपने कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं निकलता चाहते।

अगर सफल होना हैं तो कम्फर्ट जोन को छोड़ना पड़ेगा

‘कम्फर्ट जोन’ यह आपकी सुविधा क्षेत्र है , अगर आपको सफल होना हैं तो इसके बाहर कदम रखना होगा।  अपने जूनून की खोज करनी होगी।  अपने लक्ष्यों को पूरा करने और खुशी पाने के लिए यह महत्वपूर्ण कदम उठाना होगा।

हालाँकि आप अपने कम्फर्ट जोन में आराम से हैं और सभी चाहते है की लाइफ आराम से कटे, पर क्या ऐसे ही चलने देना चाहियें। लेकिन सफल होना हैं, कुछ करना हैं तो इससे बाहर आना होगा। यह बात सब जानते हैं तो, हम अपने सुविधा क्षेत्र में क्यों रहते हैं?

इसका सीधा सा जबाब है – किसी नई चीज को क्रिया में  स्थानांतरित होने के लिए ऊर्जा , समय और ज्ञान लगता है। जिससे हम बचना चाहते हैं या डरते हैं की कही असफल न हों जाएँ।  यह जीवन का एक सरल तथ्य है।

हम कम्फर्ट जोन में हैं इसका मतलब यह नहीं की हम आराम से और खुश हैं। लेकिन ऐसा करना हमारी दिनचर्या में शामिल हो चुका है। आप अपने आराम क्षेत्र से  बाहर कदम न रखकर अपने आप को वो इंसान बनने से रोकते हैं जो वास्तव में आप बनना चाहते हैं। आप वो करने से रोक रहें हैं जो वास्तव में आप करना चाहते हैं।

“आराम क्षेत्र एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति आराम से और सुरक्षित महसूस करता है। जब तक आप अपने कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं निकलते, आप अपना जीवन कभी नहीं बदलते; परिवर्तन आपके सुविधा क्षेत्र के अंत में शुरू होता है।”

कम्फर्ट जोन आपके विकास को रोकता है 

आप अपनी लाइफ या तो जी रहें हैं या मर मर के जी रहें हैं ‘आपको ऐसा सुन्ना शायद अच्छा न लगे पर यह सही है। आप यह आर्टिकल पढ़ रहें हैं यानी आप वास्तव में अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर कुछ ऐसा करना चाहते है जो आप वास्तव में करना चाहते हैं और उसमे सफल होना चाहते हैं।

कम्फर्ट जोन आपको नई  चीज़े करने से रोकता हैं 

उन्होंने किया और सफल भी हुए। या आप इसे इस तरह भी कह सकते है वो कुछ नया करना चाहते थे, हालाँकि उनके पास ऐसे अवसर थे जिसे अपनाकर वो आराम से अपनी लाइफ गुजार सकते थे पर वो कुछ नया करना चाहते थे  इसके लिए वो अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकले। मुश्किलों का सामना किया और सफल हूये।

आपने अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का नाम जरूर सुना होगा।  उन्होंने टेलीफोन का अविष्कार किया। एपीजे अब्दुिल कलाम जिन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया, सत्येंकनाथ बोस जिहोने अल्बर्ट आइंस्टाइन के साथ मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की, दशरथ माँझी जिन्होंने  जिन्हें माउंटेन मैन भी कहा जाता है, केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। ऐसे कई नाम नाम है जिन्होंने अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर कुछ नया करे की कोशिश की और सफल हुए।

अपने कम्फर्ट जोन से छुटकारा कैसे पाएं 

सबसे पहले आपको अपनी क्षमता को जानना होगा. आत्मविश्वाश के साथ सही प्रयास और थोड़े धैर्य रखकर कम्फर्ट जोन से बाहर निकला जा सकता है। बस आपको इसे करने का सही तरीका पता होना चाहिए।

आप कुछ नया करना चाहते हैं, एक सफल जीवन जीना चाहते है, नाम और पैसा कमाना चाहते हैं तो सबसे पहले इस बात को ध्यान रखें की जो भी करें वो इसलिए नहीं करे की में सफल हो जाऊँगा या में अमीर और जाऊँगा बल्कि अपना काम अपना लक्ष्य इसलिए करें क्योंकि यह मुझे करना हैं यह मेरी जींद है मेरा सपना है और मुझे अपना बेस्ट देना है। इसके लिए मुझे जो भी करना होगा में करूँगा अपने कम्फर्ट जोन से बाहर रहकर सोचूंगा। यकीन मानिये आपको सफल होने से कोई नहीं रोक पाएगा।

कम्फर्ट जोन से बहार निकलना यानि आप जो अभी कर रहें हैं उसके खिलाफ काम करना,  अपने आराम के खिलाफ काम करना, अपनी एक सीधी जाती जिंदगी की खिलाफ काम करना। याद रखें समुद्र की किनारे जहाज खड़ा अच्छा नहीं लगता क्योंकि उसकी कीमत समुद्र में चलने और लहरों के खिलाफ जाने से होती है।

आप अभी जो भी कर रहें अगर उस काम को अभी या एकदम से नहीं छोड़ सकते तो आप जो भी करना चाहते है (यानि आपको जो भी लक्ष्य हैं ) उसके लिए जितना हो सके टाइम निकालिये, अपनी प्रतिभा को निखारिये और जब आपको लगाने लगे की अब आप अपने सपने को सच कर देंगे। परिणाम आना शुरू हो जाये तो धीरे धीरे अपने उस काम को जो आप नहीं करना चाहते थे छोड़ दीजिये और अपने लक्ष्य को पाने में लग जाइये।

धीरे धीरे आगे बढ़े और रुके न।  यदि आप पहला छोटा कदम रखते हैं, तो आप अगला कदम उठाने की अधिक संभावना रखते हैं – भले ही यह कुछ बड़ा हो। यह मेरा मतलब है कि जैसे जैसे आप एक एक कदम बढ़ते जायेंगे आपको आत्मविश्वास बढ़ता जायेगा। आप कम्फर्ट जोन से बहार निकल जायेंगे।

एक व्यक्ति जो बॉडीबिल्डर बनाना चाहता है और अपना नाम कमाना चाहता है तो वह सोफे पर बैठकर मिल्क शेक पीकर ऐसा नहीं कर सकता, इसके लिए उसे बजन उठाना होगा अपने शरीर को तकलीफ देनी होगी जो शुरू में बहुत तकलीफ देय होगा, पर जितना वो यह करता जायेगा उसे आगे उतना ही आसान लगता जायेगा और वो इसलिए सफल हो जायेगा क्योंकि उसने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर काम किया।


इच्छा शक्ति क्या है

इच्छा शक्ति क्या है ?


इच्छा शक्ति दो शब्दों से मिलकर बना है ; इच्छा + शक्ति = इच्छा शक्ति।  पहले ज़रूरी है किसी चीज़ को पाने की, किसी काम में सफल होने की आपकी इच्छा (Will), उसके बाद उस इच्छा को बनाये रखने की शक्ति (Power)। अपने फैसले पर अपनी आदतों को बदलने और किसी काम में दृण रहने की शक्ति ही आपकी इच्छा शक्ति है।

आप अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहते है यह आपकी इच्छा है, उसके लिए आपको व्यायाम करना होगा, जो आपके लिए एक आलस्य भरा काम हो सकता है। इसके बाबजूत आपकी इच्छाशक्ति दृण है, तो आप जो चाहते हैं वो होगा।


आप कुछ भी पाना या छोड़ना चाहते हैं, यह तभी संभव हो पाता है जब आपकी इच्छा शक्ति दृण होगी 

इच्छाशक्ति ही आपके संकल्प को साकार बनाती है। आप अपनी असफलताओं से, अपनी मुसीबतों से तभी लड़ सकते हैं जब आपकी इच्छा शक्ति मज़ूबत हैं। जो लोग जीवन में सफल नहीं हो पाते उसका प्रमुख कारण इच्छाशक्ति का न होना है। अपनी इच्छाशक्ति के बल पर आप बड़ी से बड़ी बाधाओं को भी पार कर लेते है।

इच्छाशक्ति कैसे बढ़ाये ? 

इच्छाशक्ति (Will Power) एक ऐसी प्रतिक्रिया है जो हमारे मानसिक और शारारिक दोनों पर निर्भर करती है। इच्छाशक्ति (Will Power) को बढ़ाया जा सकता है। इच्छाशक्ति को कैसे बढ़ाया जाये – इसके लिए कुछ बिंदुओं को जानते हैं –

तनाव को कम करना सीखें (Reduce Stress)

इच्छाशक्ति में ‘शक्ति’ शब्द का प्रयोग हो रहा रहा है, जबकि तनाव हमारी मानसिक और शारारिक शक्ति को कमज़ोर करता है। तनाव में जो भी फैसला लिया जाता हैं वह कई बार  गलत हो जाता है। तनाव में आना इच्छाशक्ति (Will Power) को कम कर देता है।


सकारात्मक रवैया (Positive Attitude)

सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से आपका जीवन का दृष्टिकोण व्यापक, संभावनाओं से भरा लगता है। सकारात्मक सोच आपके इरादों को दृण करते हैं जिसके फलस्वरूप आपकी इच्छाशक्ति बढ़ जाती है।


इसके विपरीत आपका नकारात्मक रवैया आपकी इच्छाशक्ति को कम करता जाता है। सकारात्क सोच से आप स्वाभाविक रूप से बेहतर कौशल विकसित कर सकते हैं।


किसी भी कार्य के प्रति सकारात्मक रवैया आपमें कॉन्फिडेंस लाता है, कॉन्फिडेंस आपके अंदर दृण इच्छाशक्ति का विस्तार करता है। नकारात्मक दृष्टिकोण भय को बढ़ावा देते हैं, और ध्यान और मन को संकुचित करते हैं। हमेशा सकारात्मक सोचें, सकारत्मक निर्णय लें, जोकि इच्छाशक्ति को बढ़ने के लिए अनिवार्य है।


खुद को प्रोत्साहित करें  (Encourage Yourself) 

किसी काम को करने से पहले आप कहते हैं ‘मैं नहीं कर सकता पर कोशिश कर लेता हूँ।’ आप सोचिये आपकी इच्छाशक्ति ऐसा कहने से बढ़ेगी या कम होगी ? यकीनन कम हो जायगी। हर बार किसी काम को करने से पहले आप कहते हैं मैं नहीं कर पायूँगा तो आप एक प्रतिक्रिया का  लूप बना रहे होते हैं जो आपकी इच्छाशक्ति (Will Power) ख़तम कर देता है।


आप प्रश्न करें ‘मैं यकीनन कर पायूँगा या कर पाऊँगी’। आप सोचिये आपकी इच्छाशक्ति ऐसा कहने से बढ़ेगी या कम होगी ? यकीनन बढ़गी। इच्छाशक्ति के बढ़ने से आप सोचते है ‘कैसे होगा। इच्छाशक्ति के न होने पर आप सोचते हैं ‘नहीं होगा’। इच्छाशक्ति होने पर आप काम के रास्ते ढूढ़ते हैं  और न होने पर आप बचने के रास्ते ढूढ़ते हैं।


किसी भी काम को करने से पहले  आपके अंदर से आवाज़ आनी चाहियें यह मैं कर लूंगा।  जब आप ऐसा कहते हैं तो आपकी इच्छा शक्ति बढ़ जाती हैं फिर आपको करने के रास्ते दिखना शुरू हो जाते हैं। एक पुरानी कहावत है ‘जहाँ चाह वहाँ राह। खुद को प्रोत्साहित करते रहें। आप जैसा सोचते हैं आप वैसा ही करने लगते हैं और आप जो चाहते हैं वैसा ही होने लगता है।

व्यायाम और पोषण 

यदि आप थके हुए हैं, कमज़ोरी महसूर कर रहे होते हैं या बीमार हैं तो आपकी इच्छाशक्ति भी कम होती जाती है। एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है। एक स्वस्थ शरीर जोश से भरा हुआ होता है। एक स्वस्थ दिमाग निर्णय लेने में सक्षम होता है और इच्छाशक्ति मज़बूत होती है।

आप आलस्य से भरे हुए, झुके कन्धों, झुकी हुई गर्दन और मुरझाये हुए चेहरे से एक मज़बूत इच्छा शक्ति नहीं बना सकते, इसके लिए आपको, आपके शरीर को स्वस्थ रखना होगा जोकि प्रतिदिन व्यायाम और अच्छे पोषण आहार से ही संभव है।

अपनी सीमाएँ बढ़ाएँ 

अपने आप को एक दायरे में न बांधें।  अपनी सीमायें (Limits) को धीरे धीरे बढ़ायें। जैसे जैसे आप अपनी सीमाओं को बढ़ाते जाते हैं आपकी इच्छाशक्ति भी बढ़ती जाती है।

ध्यान 

आपकी इच्छाशक्ति का बढ़ना या कम होना आपकी मानसिक प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरुप प्रभावित होती है।  ध्यान के द्वारा आप अपनी इच्छाशक्ति को बढ़ा सकते हैं। हो सकता है Meditation सुनने में एक साधारण सा शब्द लगे, लेकिन यह शब्द वो कर सकता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

अपने ऊपर विश्वास रखें 

यदि आपको अपने ऊपर विश्वाश नहीं है तो कोई और आप पर  विश्वास क्यों करेगा। हो सकता है  कि हर बार आप बेहतर न कर पायें पर घवराने और निराश होने से कुछ हाँसिल नहीं होता बल्कि आपकी इच्छाशक्ति भी कम होती जाती है।

वक्त चाहें कैसा भी हो आप अपने आप पर हमेशा विश्वाश रखें, गलतिओ से हमेशा सीखने की कोशश करते रहें। अपनी इच्छा शक्ति को कभी कम न होने दें।

धैर्य रखें

जब आप हड़बड़ाहट में होते हैं तो अक्सर गलत फैसले लेते हैं जिसके कारण आप अपनी इच्छाशक्ति को खोते जाते हैं। हमेशा धैर्य रखें। जब किसी काम को आप धैर्य रखकर करते हैं तो उस काम को बेहतर तरीके से कर पाते हैं। आपका धैर्य रखना आपकी इच्छाशक्ति को बढ़ता है।

सामना करें 

किसी भी चीज़ से बचना आपकी इच्छाशक्ति को कमज़ोर करता जाता है। वो चीज़ कोई भी समस्या हो सकती है, व्यक्ति हो सकता है, हालात हो सकते हैं या कोई समय हो सकता है। हर उस चीज़ का सामना करें जिससे आपको डर लगे। जैसे जैसे आप उन चीज़ो का सामना करने लग जाते हैं जिनका सामना आप नहीं करना चाहते, आपकी इच्छाशक्ति बढ़ती जाती है।

ईर्ष्या मत करो 

आपको शायद ऐसा न लगे पर वास्तव में आपका ईर्ष्या करना आपकी इच्छाशक्ति का अंत कर देता है। आप महसूस करें यदि आप किसी व्यक्ति के व्यापार को लेकर, किसी के पैसे को लेकर, किसी की सफलता को लेकर उससे ईर्ष्या करते है तो आप उस व्यक्ति से ईर्ष्या नहीं करते बल्कि आप ऐसा नहीं बन पा रहे इस बात को लेकर अपने आप को कोसते हैं आपके अंदर हीन भावना का जन्म होता है। इसी भावना आपकी इच्छाशक्ति को बिलकुल ख़त्म कर देती हैं।  अगर आपको अपनी इच्छाशक्ति को बढ़ाना है तो किसी से भी ईर्ष्या न करें।


 

सेवा में लक्ष्मी

 

सेवा में लक्ष्मी

'लक्ष्मी' का अर्थ है श्री-- और यह 'श्री' शब्द आया है 'सेवा' करने से ; -- तुम यथोपयुक्त भाव से अपने संसार और संसार के पारिपार्श्विक का, जहाँ जितना सम्भव हो, वाक्य, व्यवहार, सहानुभूति, सहायता द्बारा दूसरे का अविरोध भाव से मंगल करने की चेष्टा करो, तुम्हारी लक्ष्मी-आख्या ख्यातिमंडित होगी-- देखोगी। 35

--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

सेवा से अपघात

 

सावधान रहो-- किसी की भलाई करने में दूसरे की भलाई को विध्वस्त नहीं करो,-- एक की सुख्याति करने में दूसरे की अख्याति नहीं करो, एक की सेवा करने में दूसरे के प्रति दृष्टिहीन नहीं हो; साधारणतः ऐसा ही होता है-- तुम किंतु इस ओर विशेष नजर रखो। 36

-- श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

भाव और कर्म

 भाव और कर्म

भाव भाषा को मुखर कर देता है-- पुनः, भाव ही कर्म को नियंत्रित करता है, और, भावना से ही भाव उदित होता है ; अतएव अपनी भावना को जितने सुंदर, सुश्रृंखल, सहज, अविरोध एवं उन्नत ढंग की बनाओगी-- तुम्हारी भाषा, व्यवहार, और कर्मकुशलता भी उतनी सुंदर अविरोध और उन्नत ढंग की होगी।

--: श्री श्री ठाकुर, नारी नीति

परिजन में व्याप्ति

 

परिजन में व्याप्ति

यदि यशस्विनी बनना चाहती हो-- अपने निजस्व और वैशिष्ट्य में अटूट रहकर पारिपार्श्विक के जीवन और वृद्धि को अपनी सेवा और साहचर्य से उन्नति की दिशा में मुक्त कर दो तुम प्रत्येक की पूजनीया और नित्य प्रयोजनीया होकर परिजन में व्याप्त होओ -- और ये सभी तुम्हारे स्वाभाविक या चरित्रगत हों

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

चाह की विलासिता

 

चाह की विलासिता

जभी देखो-- तुम्हारे वाक, व्यवहार, चलन, चरित्र और लगे रहना तुम्हारी चाह को जिस प्रकार परिपूरित कर सकते हैं-- उसे सहज रूप से अनुसरण नहीं कर रहें हैं ; -- निश्चय जानो-- तुम्हारी चाह खांटी नहीं है-- चाह की केवल विलासिता है।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

संतोष में सुख

 

संतोष में सुख

अपने प्रयोजन को बढ़ाकर मान-यश की आकांक्षा किये वगैर, सेवा-तत्पर रहकर सर्वदा संतुष्ट रहने के भाव को चरित्रगत कर लो ;-- सुख तुम्हें किसी तरह नहीं छोड़ेगा।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

कतिपय महत्-गुण

 

कतिपय महत्-गुण

आदर्श में अनुप्राणता, सेवा में दक्षता, कार्य में निपुणता, बातों में मधुरता और सहानुभूति, व्यवहार में सम्वर्द्धना-- ये सभी महदगुण हैं।

माँ की तरह

 

माँ की तरह

तुम मनुष्य की माँ जैसा अपना बनने की चेष्टा करो-- कथनी, सेवा और भरोसा से, किंतु घुलमिलकर नहीं; देखोगी-- कितने तुम्हारे अपने बनते जा रहे हैं। 

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

स्वमत-प्रकाश

 

स्वमत-प्रकाश

जो नारी नत होकर, सम्मान सहित अपना मत प्रकाश करती है-- एवं उस विषय में किसी को भी हीन नहीं बनाती, वह-- सहज ही आदरणीया एवं पूजनीया होती है।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

सेवा और सेवा का अपलाप

 

सेवा और सेवा का अपलाप

"सेवा" का अर्थ वही है जो मनुष्य को सुस्थ, स्वस्थ, उन्नत और आनंदित कर दे ; जहाँ ऐसा हो परन्तु शुश्रूषा है -- वह सेवा अपलाप को आवाहन करती है

क्षिप्रता और दक्षता

 

क्षिप्रता और दक्षता

क्षिप्रता सहित दक्षता को साध लो, और नजर रखो भी-- मनुष्य के प्रयोजनानुसार हावभाव पर ; और हावभाव को देखकर ही जिससे प्रयोजन को अनुधावन कर सको-- अपने बोध को इसी प्रकार तीक्ष्ण बनाने की चेष्टा करो; इसी प्रकार ही-- क्षिप्रता और दक्षता सहित-- मनुष्य के प्रयोजन को अनुधावन कर सेवा-तत्पर बनो, -- देखोगी-- सेवा का जयगान तुम्हें परिप्लुत कर देगा।

सुख और भोग

 

सुख और भोग

सुख का अर्थ वही है जो being को ( सत्ता या जीवन को ) सुस्थ, सजीव और उन्नत कर पारिपार्श्विक को उस प्रकार बना दे, -- और प्रकृत भोग तभी वहाँ उसे अभिनंदित करता है।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

धर्मकार्य

 


धर्मकार्य

धर्मकार्य का अर्थ है वही करना-- जिससे तुम्हारा और तुम्हारे पारिपर्श्विक का जीवन, यश और वृद्धि क्रमवर्द्धन से वर्द्धित हो ;-- सोच, समझ, देख, सुनकर-- वही बोलो,-- और आचरण में उसका ही अनुष्ठान करो,-- देखोगी-- भय और अशुभ से कितना त्राण पाती हो।

--: श्री श्री ठाकुरनारी नीति

श्री श्री ठाकुर की वाणी का आशय जैसा मैंने समझा :- 

धर्मकार्य का अर्थ है वह कार्य करना, जिससे न केवल आपका व्यक्तिगत जीवन सुधरे, बल्कि आपके आस-पास के लोगों और समाज का भी कल्याण हो। धर्म का असली अर्थ केवल धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका संबंध जीवन के हर पहलू से है। इसका उद्देश्य केवल आत्मकल्याण नहीं, बल्कि समस्त जीव-जगत का कल्याण है।

यहाँ इस विचार को और अधिक विस्तार से समझा जा सकता है:

1. स्वयं और समाज की उन्नति (Self and Societal Growth):

धर्मकार्य का पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके द्वारा आपका जीवन और आपके पारिपर्श्विक (परिवेश) का जीवन भी उन्नत होना चाहिए। इसका अर्थ है कि कोई भी कार्य जो आप करते हैं, वह आपके जीवन को और अधिक मूल्यवान बनाए, आपके व्यक्तित्व को संवारें, और आपके आसपास के लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाए। जब आप सही मार्ग पर चलते हैं, तो आप न केवल स्वयं के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं।

2. सोच-समझकर कार्य करना (Thoughtful Actions):

धर्मकार्य का दूसरा पहलू यह है कि आपको कोई भी निर्णय सोच-समझकर लेना चाहिए। केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि आपकी सोच, समझ, और अनुभव के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। जब आप सोच-समझकर काम करते हैं, तो गलतियों की संभावना कम होती है और आप सही दिशा में आगे बढ़ते हैं। यह जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है, चाहे वह आपके व्यक्तिगत संबंध हों, पेशेवर जीवन हो, या समाज के प्रति आपकी जिम्मेदारियाँ।

3. सुनना और देखना (Listening and Observing):

धर्मकार्य का एक महत्वपूर्ण तत्व यह भी है कि आपको दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए और उनकी स्थिति को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह आपको सही निर्णय लेने में मदद करता है। इसके साथ ही, आपको अपने आसपास की घटनाओं को भी ध्यान से देखना चाहिए। देखना केवल अपनी आँखों से ही नहीं, बल्कि अपने दिल और दिमाग से भी देखना है। इससे आप समझ सकते हैं कि कौन सी चीजें सही हैं और कौन सी गलत।

4. सही बोलना और सही करना (Speaking and Acting Rightly):

धर्मकार्य का अर्थ यह भी है कि आप जो बोलें, वह सत्य और उचित हो। बोलने से पहले सोचें कि आपका कहा गया शब्द किसी को चोट न पहुंचाए। यदि आप सोच-समझकर, देख-सुनकर बोलेंगे, तो आपके शब्द दूसरों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इसी तरह, आपका आचरण भी ऐसा होना चाहिए कि वह आपके शब्दों का समर्थन करे। केवल बोलने से कुछ नहीं होता, आपका आचरण भी वैसा ही होना चाहिए। जब आप अपने शब्दों और कर्मों में सामंजस्य स्थापित करते हैं, तो आप एक सच्चे धर्माचारी बन जाते हैं।

5. भय और अशुभ से मुक्ति (Freedom from Fear and Inauspiciousness):

जब आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो आपके जीवन से भय और अशुभ दूर हो जाते हैं। धर्मकार्य का यह परिणाम है कि आपका मन शांत और स्थिर रहता है। आप जानते हैं कि आपने जो भी किया, वह सही और उचित है, इसलिए आपको किसी भी प्रकार के नकारात्मक परिणामों का डर नहीं रहता। इस प्रकार, आप जीवन में हर स्थिति का सामना धैर्य और साहस के साथ कर सकते हैं।

6. मूल्यों और नैतिकता का पालन (Adherence to Values and Ethics):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू है मूल्यों और नैतिकता का पालन करना। जीवन में अनेक परिस्थितियाँ आएंगी जहाँ आपके सिद्धांतों की परीक्षा होगी। उस समय आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपका कार्य आपके मूल्यों के अनुसार ही हो। ईमानदारी, सच्चाई, सहानुभूति, और न्याय जैसे मूल्यों का पालन आपको धर्म के पथ पर बनाए रखता है।

7. समाज के प्रति जिम्मेदारी (Responsibility towards Society):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें। केवल अपने लिए जीना धर्म नहीं है, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी कुछ करना धर्म का हिस्सा है। आपके कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव आना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी की मदद कर सकते हैं, तो आपको वह करना चाहिए। अगर आप अपने कार्यों के माध्यम से समाज की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, तो वह भी धर्मकार्य का हिस्सा है।

8. आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति (Self-Realization and Inner Peace):

धर्मकार्य का अंतिम और महत्वपूर्ण उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति प्राप्त करना है। जब आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो आप स्वयं को बेहतर समझने लगते हैं। आप अपने जीवन के उद्देश्य को समझते हैं और उसके अनुसार कार्य करने लगते हैं। इससे आपको आंतरिक शांति मिलती है और आपका जीवन अधिक सार्थक बनता है।

9. धर्मकार्य में समर्पण (Dedication in Righteous Actions):

धर्मकार्य के लिए समर्पण आवश्यक है। आपको अपने कार्यों में पूरी ईमानदारी और लगन से जुटना चाहिए। आधे-अधूरे मन से किए गए कार्य में सफलता की संभावना कम होती है। लेकिन जब आप पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ धर्मकार्य करते हैं, तो आप हर परिस्थिति में सफल होते हैं।

10. प्रेरणा का स्रोत (Source of Inspiration):

धर्मकार्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आपका जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। जब आप सही कार्य करते हैं, तो लोग आपसे प्रेरणा लेते हैं और वे भी धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। इस प्रकार, आप न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाते हैं।

निष्कर्ष:

धर्मकार्य का अर्थ केवल धार्मिक कार्यों का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है एक ऐसा जीवन जीना जो न केवल आपको, बल्कि आपके आसपास के लोगों को भी उन्नति की ओर ले जाए। यह एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसमें विचार, शब्द, और कर्म तीनों का समन्वय आवश्यक है। जब आप सोच-समझकर, देख-सुनकर, सही बोलते हैं और उसी के अनुसार आचरण करते हैं, तो आप धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इस मार्ग पर चलने से आपको भय और अशुभ से मुक्ति मिलती है और आपका जीवन शांति और संतोष से भर जाता है।

पुष्पा बजाज, शिलोंग .